Wednesday 22 March 2017

19 वीं सदी में दीघा फार्म

19 वीं सदी में दीघा फार्म में तैयार सामान लंदन भेजे जाते थे ।
प्लासी की लड़ाई में नवाब सिराज-उद-दौला को हराने के बाद बंगाल पर आधिपत्य कायम हो गया . अब उन्हें शासन करने के लिए एक काबिल प्रशासक और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ की जरुरत थी .
  • फलस्वरूप इंग्लैंड से कई सुशिक्षित व्यक्ति अपने परिवारों के साथ हिंदुस्तान आये . इनमें कई महिलाएं भी थी जो अपने प्रयाप्त समय का सदुपयोग किताबें लिखने में भी करती थी. ऐसी महिलाओं में लेखिका एम्मा रॉबर्ट्स का व्रितांत सबसे महत्वपूर्ण है .यह पुस्तक के रूप में "सीन्स एंड चरेक्टेरिस्टिक्स ऑफ़ हिन्दोस्तान विद स्केचेप ऑफ़ एंगलो इंडियन सोसाइटी" 1835 में छप कर आई ।

  • एम्मा ने एक दक्ष पर्यवेक्षक की तरह बिहार खासकर पटना का अंतरंग चित्रण किया है . पटना के बारे में उन्होंने विस्तार से तो लिखा है , लेकिन सबसे रोचक वर्णन उन्होंने दीघा में रह रहे एक अंग्रेज़ व्यवसायी मिस्टर हॉवेल के कारोबार के बारे में किया है . उन्होंने लिखा है,हॉवेल की नाव हिलसा मछली पकड़ने लिए हुगली नदी के मुहाने तक जाती है . उसके बाद उसे ठीक से तैयार कर हिंदुस्तान के हर हिस्से में भेजा जाता है . हॉवेल के फार्म का तैयार किया हुआ चटनी,सॉसेज,बेकन,हैम्स, बीफ इत्यादि बाड़े पैमाने पर कलकत्ता भेजे जाते है . कलकत्ता से ये लंदन तक भेजे जाते हैं |
  • हॉवेल के निधन के बाद कारोबार शीघ्र ही बिखर गया . हॉवेल के "द वाइट पिलर हाउस" को चैनपुर के राजा ने खरीद लिया . उनसे जूता बनाने वाली कंपनी बाटा ने इसे खरीद लिया . तब से यह केवल उसके मेनेजर का आवास बन कर रह गया 

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