- इस कब्रिस्तान में उर्दू के अदीबों का कभी लगता था अड्डा|
- पटना के अशोक राजपथ पर पीरबहोर थाना के सामने बने अंग्रेजों के कब्रिस्तान में पिछली सदी के आठवे,नौवें दशक में उर्दू के अदीब जमा हुआ करते थे।उन्होंने इसे कब्रिस्तानियां नाम दिया था ।
- दफ़नाने के लिए जगह भर जाने की वजह से 1946 में यह कब्रिस्तान बंद कर दिया गया । फिर देश आजाद हुआ। सुरु के दिनों में यह कब्रिस्तान सुनसान सी जगह ही थी । इसका लोहे का दरवाज़ा हमेसा बंद ही रहता था । धीरे धीरे इस सुनसान कब्रिस्तान में लोग आने लगे । इसके दरवाज़े पर एक चाय की दुकान भी खुल गयी । फिर यह कब्रिस्तान कई लोगों का शरण स्थल बन गया ।
- शाम के वक़्त यहाँ उर्दू के शायरों अफसानानिगारों की महफ़िल जमने लगी ।
- उर्दू शार्ट स्टोरी पर शोध करने आई अमेरिकन मिस लिंडावेंटिक भी यहीं आकर उर्दू के अदीबों से मिली थी । उर्दू वालों के लिए यह खास जगह बन गयी थी
Thursday, 30 March 2017
एक कब्रिस्तान ऐसा भी
Tuesday, 28 March 2017
Munger Fort
- The 𝐌𝐮𝐧𝐠𝐞𝐫 𝐅𝐨𝐫𝐭, located at Munger (also spelt as Monghyr during the British Raj), in the state of Bihar, India, is built on a rocky hillock on the south bank of the Ganges River. Its history is not completely dated but it is believed that it was built during the early rule of Slave dynasty of India. The Munger town where the fort is situated was under the control of Muhammad bin Tughluq of Delhi (1325-1351 AD).
- The fort has two prominent hills called the Karnachaura or Karanchaura, and the other a built up rectangular mound deduced to be the location of a citadel of the fort with historical links. The Fort had a succession of Muslim rulers (Khaljis, Tughlaqs, Lodis, Nawabs of Bengal, followed by Mughal rulers, till it was finally acceded to the British by Mir Quasim (1760–72), after unseating his father-in-aw Mīr Jafar on the grounds of old age, for a monetary reward negotiated by Vansittart.
- This deal involved payment by the East India Company’s merchants of an ad valorem duty of 9 percent, against an Indian merchant’s duty of 40%. The fort became a place of considerable importance to the British in Bengal till 1947 (India'a independence).
- The fort houses a number of religious and historic monuments such as the Tomb of Pir Shah Nufa (died 1497), Palace of Shah Suja, Tomb of Mulla Muhammad Said (died 1704 AD), the Kashtaharini Ghat on the Ganges River, Chandisthana (an ancient temple) and an 18th century British cemetery. In recent times, a famous School of Yoga has been established here.
Friday, 24 March 2017
जब गुरु नानक पटना आये
- सिख धर्म,भक्ति आंदोलन-जिसकी जड़ें शताब्दियों वर्ष पुरानी थी ।
- इसका 15 वीं और 16 वीं सदी तक व्यापक विस्तार हो चूका था ।
- सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक ने अपने शिष्य मरदाना के साथ अपनी धार्मिक यात्रा की शुरुआत पूरब दिशा से की थी । 1496 में उन्होंने ननकाना साहिब से इस यात्रा की शुरुआत की थी । बनारस होते हुए वे गया आये ।
- गुरु नानक गया में कुछ दिनों तक रुकने के बाद बोधगया,राजगीर होते हुए पटना आये ।वे पटना में करीब 4 महीने तक रुके ।
- यहाँ सुबह शाम उनके उपदेश होते । पटना के निवासियों पर उनका जबर्दस्त प्रभाव पड़ा । पटना का एल समृद्ध जौहरी सालिस राय उनसे बहुत प्रभावित हुआ ।
- उसने अपना महल, जहाँ आज गुरु द्वारा पटना साहिब है,गुरु नानक को सौंप दिया । वह सिख धर्म में दीक्षित भी हो गए । पटना से जाते वक़्त गुरु नानक ने उसे अपना उत्तराधिकारी भी बना दिया ।
Wednesday, 22 March 2017
19 वीं सदी में दीघा फार्म
19 वीं सदी में दीघा फार्म में तैयार सामान लंदन भेजे जाते थे ।
प्लासी की लड़ाई में नवाब सिराज-उद-दौला को हराने के बाद बंगाल पर आधिपत्य कायम हो गया . अब उन्हें शासन करने के लिए एक काबिल प्रशासक और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ की जरुरत थी .
- फलस्वरूप इंग्लैंड से कई सुशिक्षित व्यक्ति अपने परिवारों के साथ हिंदुस्तान आये . इनमें कई महिलाएं भी थी जो अपने प्रयाप्त समय का सदुपयोग किताबें लिखने में भी करती थी. ऐसी महिलाओं में लेखिका एम्मा रॉबर्ट्स का व्रितांत सबसे महत्वपूर्ण है .यह पुस्तक के रूप में "सीन्स एंड चरेक्टेरिस्टिक्स ऑफ़ हिन्दोस्तान विद स्केचेप ऑफ़ एंगलो इंडियन सोसाइटी" 1835 में छप कर आई ।
- एम्मा ने एक दक्ष पर्यवेक्षक की तरह बिहार खासकर पटना का अंतरंग चित्रण किया है . पटना के बारे में उन्होंने विस्तार से तो लिखा है , लेकिन सबसे रोचक वर्णन उन्होंने दीघा में रह रहे एक अंग्रेज़ व्यवसायी मिस्टर हॉवेल के कारोबार के बारे में किया है . उन्होंने लिखा है,हॉवेल की नाव हिलसा मछली पकड़ने लिए हुगली नदी के मुहाने तक जाती है . उसके बाद उसे ठीक से तैयार कर हिंदुस्तान के हर हिस्से में भेजा जाता है . हॉवेल के फार्म का तैयार किया हुआ चटनी,सॉसेज,बेकन,हैम्स, बीफ इत्यादि बाड़े पैमाने पर कलकत्ता भेजे जाते है . कलकत्ता से ये लंदन तक भेजे जाते हैं |
- हॉवेल के निधन के बाद कारोबार शीघ्र ही बिखर गया . हॉवेल के "द वाइट पिलर हाउस" को चैनपुर के राजा ने खरीद लिया . उनसे जूता बनाने वाली कंपनी बाटा ने इसे खरीद लिया . तब से यह केवल उसके मेनेजर का आवास बन कर रह गया
Monday, 20 March 2017
पटना का कॉफ़ी हाउस
- पटना के डाकबंगला रोड से गुजरते हुए अब यह एक स्वप्न की तारह प्रतीत होता है कि कभी यहाँ एक कॉफ़ी हाउस हुआ करता था ; जो करीब 17 साल तक कई महत्वपूर्ण गतिविधियों का केंद्र बना रहा ।
- 1971 ई० में तत्कालीन राज्यपाल देवकांत बउआ और तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र के सम्मिलित प्रयासों से यह कॉफ़ी हाउस खुला । यहाँ आने वाले में नेपाल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री बीपी कोइराला जैसे क्रांतिकारी,दिनकर जैसे महाकवि,फणीश्वर नाथ रेणु जैसे लेखक तो दूसरी ऒर देश के कोने-कोने से आये हुए समाजवादी क्रन्तिकारी भी थे ।
- आज लोगों को यह जानकर विस्मय होगा कि राज्यपाल के पद पर रहते हुए भी देवकांत बउआ अपने फुरसत के क्षणों में कॉफ़ी हाउस में आ जमते थें ।
- इमरजेंसी के दिनों में यह कॉफ़ी हाउस अत्यंत ही महत्वपूर्ण हो गया था. ख़ुफ़िया विभाग के लोग यहाँ दिन भर मंडराया करते थे । एक दिन फणीश्वरनाथ रेणु ने इसी कॉफ़ी हाउस से रिक्शे पर सवार हो इमरजेंसी के विरोध में गांधी मैदान को सभा में जा कर अपना पद्मश्री वापस किया था ।
- ...तो यह था कॉफ़ी हाउस.यहाँ सभी आते रहें .इसने कभी किसी को आने से नहीं रोका
Saturday, 18 March 2017
क्रूर हत्यारे नहीं , सहृदय कलाप्रेमी थे आर्चर
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पटना में 11 अगस्त को सचिवालय पर झंडा फहराने के प्रयास में जो सात किशोर शहिद हुए थे,उसके लिए तत्कालीन जिलाधीश डब्ल्यू जी आर्चर को जिम्मेवार माना जाता है किन्तु बाद के दिनों में जो तथ्य प्रकाश में आये, उनसे पता चलता है कि उन शहीदों पर पहली गोली तत्कालीन पुलिस आईजी शील्ड बयान ने चलायी थी|
- यह बात स्वयं आर्चर ने स्वर्गीय जिलानी को बतायी थी।
- जब आर्चर स्वयं पटना आये थे तो अपने मेजबान भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक वरिष्ट अधिकारी को यह बात बतायी थी ।
- उन्होंने यह भी बताया था कि हंगामे के बीच जो फायर का आदेश मौखिक रूप में दिया गया था,वह उनका नहीं बल्कि तत्कालीन पुलिस आईजी ब्यान का हरबड़ी भरा आदेश था। आर्चर उतने क्रूर नहीं थे,जितना की 1942 की उस ह्रदय विदारक घटना के बाद उन्हें समझ जाने लगा था ।इसके उलट उन्हें भारत और उसके संस्कृति से गहरा लगाव था|
- यह सच है कि आर्चर ब्रिटिश हुक्मरानों में शामिल थे,लेकिन एक दूसरा सच यह भी है कि आर्चर क्रूर हत्यारे नहीं,बल्कि एक सहृदय कलाप्रेमी थें
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