1632 में जब पुर्तगालियों को हुगली से बाहर निकाला गया तो पटना के साथ भी उनका व्यापारिक सम्बन्ध अचानक ख़त्म हो गया। ठीक उसी वर्ष पटना के बाजार में डचों ( हॉलैंड के निवासी ) का प्रवेश हुआ। डच ईस्ट इंडिया कंपनी1602 में स्थापित एक चार्टड कंपनी थी, जिसे नीदरलैंड के राज्यों से एशिया के बाज़ारों में 21 वर्षों तक व्यापार करने की अनुमति मिली हुई थी।
डच ईस्ट इंडिया कंपनी को दुनियां का पहला बहुराष्ट्रीय कंपनी माना जाता है। यह पहली ऐसी कंपनी थी, जिसने बाजार में शेयर जारी किये थे। डच ईस्ट इंडिया कंपनी ऐसी शक्तिशाली कंपनी थी जो युद्ध छेड़ने की क्षमता रखता था। इसे उपनिवेशों की स्थापना का अधिकार था और इसके स्वयं के सिक्के भी थे।
डचों ने गुजरात में कोरोमंडल समुद्र तट, बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में अपनी व्यापारिक कोठियां खोलीं। डच लोग मुख्यत: मसालों, नीम, कच्चे रेशम, शीशा, चावल, शोरा व अफीम का व्यापार भारत से करते थे।
पटना में उन्होंने अशोक राजपथ पर अपनी पहली व्यापारिक कोठी बनाई। पटना उन दिनों शोरा, अफीम, सूती और सिल्क के कपड़ों के लिए मशहूर था। पटना और कसिमबाज़ार इन वस्तुओं के व्यापार के लिए काफी समृद्ध और मुनाफे वाला केंद्र माना जाता था। डचों की रूचि शोरा और अफीम में ज्यादा थी। उसके बाद सूती और सिल्क कपड़ों में।
18 वीं सदी के शुरू के वर्षों तक डचों ने बिहार में पटना, दौलतगंज, छपरा, सिंघिया और हाजीपुर में जमकर व्यापार किया और खूब मुनाफा कमाया। किन्तु 1712 में पटना में फ़र्रुख़सियर की ताजपोशी ने डचों के व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। उधर यूरोप में भी डच कमजोर होते जा रहे थे। उसका प्रभाव हिंदुस्तान पर भी पड़ा।
1717 में फ़र्रुख़सियर से फरमान हासिल करने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने डचों को निष्प्रभावी बना दिया। शोरा के व्यापार पर से डचों का नियंत्रण समाप्त हो गया। धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल और बिहार के बाजार में अपने को स्थापित कर लिया। डचों ने पटना में जो अपनी कोठी बनाई थी वह अंग्रेजों के अधीन हो गया। काफी दिनों तक यह अफीम के एजेंट मिस्टर विल्टन का आवास रहा।
1828 तक इस डच भवन में पटना के कलेक्टर का कार्यालय चलता रहा। 2 फरवरी 1835 को जब मैकॉले के मशहूर प्रस्ताव 'भारत में अंग्रेजी पढ़ाया जाय' को पारित किया गया तब उसके चार महीने के बाद जुलाई 1835 में इस भवन में पटना हाई स्कूल की स्थापना हुई। 1862 में यह कॉलेजिएट स्कूल बना। 9 जनवरी 1863 को इसे एक नया नाम दिया गया, पटना कॉलेज।
डच ईस्ट इंडिया कंपनी को दुनियां का पहला बहुराष्ट्रीय कंपनी माना जाता है। यह पहली ऐसी कंपनी थी, जिसने बाजार में शेयर जारी किये थे। डच ईस्ट इंडिया कंपनी ऐसी शक्तिशाली कंपनी थी जो युद्ध छेड़ने की क्षमता रखता था। इसे उपनिवेशों की स्थापना का अधिकार था और इसके स्वयं के सिक्के भी थे।
डचों ने गुजरात में कोरोमंडल समुद्र तट, बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में अपनी व्यापारिक कोठियां खोलीं। डच लोग मुख्यत: मसालों, नीम, कच्चे रेशम, शीशा, चावल, शोरा व अफीम का व्यापार भारत से करते थे।
पटना में उन्होंने अशोक राजपथ पर अपनी पहली व्यापारिक कोठी बनाई। पटना उन दिनों शोरा, अफीम, सूती और सिल्क के कपड़ों के लिए मशहूर था। पटना और कसिमबाज़ार इन वस्तुओं के व्यापार के लिए काफी समृद्ध और मुनाफे वाला केंद्र माना जाता था। डचों की रूचि शोरा और अफीम में ज्यादा थी। उसके बाद सूती और सिल्क कपड़ों में।
18 वीं सदी के शुरू के वर्षों तक डचों ने बिहार में पटना, दौलतगंज, छपरा, सिंघिया और हाजीपुर में जमकर व्यापार किया और खूब मुनाफा कमाया। किन्तु 1712 में पटना में फ़र्रुख़सियर की ताजपोशी ने डचों के व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। उधर यूरोप में भी डच कमजोर होते जा रहे थे। उसका प्रभाव हिंदुस्तान पर भी पड़ा।
1717 में फ़र्रुख़सियर से फरमान हासिल करने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने डचों को निष्प्रभावी बना दिया। शोरा के व्यापार पर से डचों का नियंत्रण समाप्त हो गया। धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल और बिहार के बाजार में अपने को स्थापित कर लिया। डचों ने पटना में जो अपनी कोठी बनाई थी वह अंग्रेजों के अधीन हो गया। काफी दिनों तक यह अफीम के एजेंट मिस्टर विल्टन का आवास रहा।
1828 तक इस डच भवन में पटना के कलेक्टर का कार्यालय चलता रहा। 2 फरवरी 1835 को जब मैकॉले के मशहूर प्रस्ताव 'भारत में अंग्रेजी पढ़ाया जाय' को पारित किया गया तब उसके चार महीने के बाद जुलाई 1835 में इस भवन में पटना हाई स्कूल की स्थापना हुई। 1862 में यह कॉलेजिएट स्कूल बना। 9 जनवरी 1863 को इसे एक नया नाम दिया गया, पटना कॉलेज।